शीशे में आब


30 June 2021

सूरत पे क्यूँ ये नक़्श-ए-नकाब झलकता है
ऐ साकी, क्यूँ मेरे शीशे में आब छलकता है

जो आज हासिल हुई है मुझे हुसूल-ए-मक़सद
ऐ सारथी, क्यूँ राह में एक ठहराव झलकता है

अफसोसों के खंडहर में मैंने एक दफ़ीना ढूंढा है
ऐ कर्रूबी, क्यूँ तालाब-ए-अश्क़ में ख़्वाब छलकता है

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