तेरी हुस्न की पाकीज़गी पे सवाल होते हैं
सनत-ओ-हर्फ़त खूबसूरती के ख्याल होते हैं
कामयाबी का मुकाम बदलता है हर रोज़
शोर होता है तो शोरों से मलाल होते हैं
हुस्न की नीलामी है मंज़र-ए-बहिश्त यहाँ
देख लें तो आज भी लाखों हाल बेहाल होते हैं
जिस्म-फ़रोशी का कारोबार सदियों का है
मज़दूर-के-इश्क़ ना जाने क्यूँ हलाल होते हैं
ज़िन्दगी बीतती है जिस मंज़र को पाने में
चंद सिक्कों जितने गहरे मायाजाल होते हैं
बेपर्दा खूबसूरती यहाँ हर चौराहे पेश है
और आपके तलबगार वहीं कंगाल होते हैं