जब धूप हल्की मद्धम सी होती थी
कोयल सुनहरे पत्तों तले छिपी होती थी
क्रिकेट की गेंद जब बल्ले पे पड़ती थी
पाँच बजे की शाम कुछ ऐसी होती थी
बर्फ के गोलों में शर्बत मिली होती थी
तार से कपड़े उतारने की बारी होती थी
बॉर्नविटा पीने मम्मी आवाज़ लगाती थी
पाँच बजे की शाम कुछ ऐसी होती थी
टीवी में कार्टून सीरियल चल रही होती थी
अगले दिन की पढ़ाई शुरू करनी होती थी
पापा की स्कूटर घर की ओर निकलती थी
पाँच बजे की शाम कुछ ऐसी होती थी
खिड़की से देख उन दिनों की याद आती है
खाली झूलों में झूलते उन यादों की याद आती है
जब शाम की चाय कप में छानता हूँ
वो पाँच बजे की शाम याद आती है