हर बूंद मेरे ख़ून की जब तेरे आंगन में सींची थी
हर पन्ने पर हम दोनों की अच्छी यादें खरोंची थी
जो दो रूम और किचन के सपने हमने साथ देखे थे
जिसके अंदर मैं, तुम, और हमारे बच्चे पास बैठे थे
वो झूला जिसके ऊपर तुम गोल घूमा करती थी
वो चद्दर जिसकी गर्मी में तुम ठंडी आहें भर्ती थी
आज हर कोना हर कमरा बहुत वीराना लगता है
हर भूला लम्हा एक जवाँ पागल दीवाना लगता है
तुम हो मेरे पास, लेकिन क्यों ये दूरी लगती है
वो साथ मानो मेरे दिल की कमज़ोरी लगती है
ले चल मुझे उस समय जहाँ रात सवेरा याद न था
कमियाँ थी, खामियाँ थी, पर ये कड़वा एहसास न था